धरती को आपकी जरूरत है, इसे बचाएँ

आज देश और दुनिया की पहली चिंता है- बिगड़ता पर्यावरण। हाल में संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण समिति ने इस बात की आशंका जताई है कि अगर आज की गति से ही जंगल कटते रहे, बर्फ पिघलती रही तो शायद पचास सालों में दुनिया के कई निचले इलाके डूब जाएंगे। यही हालत रही तो सौ सालों में मालदीव, मॉरीशस सहित भारत के मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे शहर भी पानी में डूबकर विलुप्त हो सकते हैं। इस मामले में सरकारें अपने-अपने स्तर पर प्रयास कर रही हैं, लेकिन अब भी आम आदमी में जागरूकता नहीं आई है। लोग पर्यावरण बचाने में अपनी भूमिका को नहीं पहचानते। वे सोचते हैं- मैं कर ही क्या सकता हूं? पर अगर कोई वास्तव में कुछ करना चाहे तो किसी का मुंह देखने की जरूरत नहीं है।

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

यह पर्यावरण क्या है?

'नैचरल एनवायरनमंट', जिसे हम आम बोलचाल की भाषा में एनवायरनमंट या पर्यावरण कहते हैं, आज गंभीर चिंतन का व िषय बन चुका है। यह पर्यावरण असल में है क्या? हमारी धरती और इसके आसपास के कुछ हिस्सों को पर्यावरण में शामिल किया जाता है। इसमें सिर्फ मानव ही नहीं, बल्कि जीव-जंतु और पेड़-पौधे भी शामिल किए गए हैं। यहां तक कि निर्जीव वस्तुओं को भी पर्यावरण का हिस्सा माना गया है। कह सकते हैं, धरती पर आप जिस किसी चीज को देखते और महसूस करते हैं, वह पर्यावरण का हिस्सा है। इसमें मानव, जीव-जंतु, पहाड़, चट्टान जैसी चीजों के अलावा हवा, पानी, ऊर्जा आदि को भी शामिल किया जाता है। धरती से जुड़े विज्ञान 'जीओ-साइंस' में धरती जुड़े चार स्तर बताए गए हैं, लीथोस्फेयर, हाइड्रोस्फेयर, एटमॉस्फेयर और बायोस्फेयर। ये क्रमश: चट्टान, पानी, हवा और जीवन का प्रतिनिधित्व करते हैं। कुछ वैज्ञानिक ने हाइड्रोस्फेयर में से क्रायोस्फेयर (बर्फ) को भी अलग किया है, जबकि कुछ छठा स्तर इडोस्फेयर (मिट्टी) भी मानते हैं। धरती से जुड़े रहस्यों को समझने के लिए अर्थ साइंस की कुछ शाखाएं जैसे - जिऑग्रफी, जिओलॉजी, जिओफिजिक्स और जिओडेसी विकसित की गई हैं। इनमें फिजिक्स, केमिस्ट्री, बॉयोलॉजी और मैथमेटिक्स की सहायता ली जाती है। धरती के रहस्यों को जानने की कोशिशें तो बरसों से होती रही हैं, आज जरूरत है कि इसके साथ-साथ धरती और इसके पर्यावरण को बचाने की कोशिशें भी तेज की जाएं। विश्व पर्यावरण दिवस इन्हीं कोशिशों का एक अहम हिस्सा है। देश, धर्म और जाति की दीवारों से परे यह ऐसा मुद्दा है, जिस पर पूरी दुनिया के लोगों को एक होना होगा। पर्यावरण संरक्षण सिर्फ भाषणों, फिल्मों, किताबों और लेखों से ही नहीं हो सकता, बल्कि हर इंसान को धरती के अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी, तभी कुछ ठोस नजर आ सकेगा। सोचिए! आखिर इस धरती पर रहना, तो हम सभी को है।

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