धरती को आपकी जरूरत है, इसे बचाएँ

आज देश और दुनिया की पहली चिंता है- बिगड़ता पर्यावरण। हाल में संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण समिति ने इस बात की आशंका जताई है कि अगर आज की गति से ही जंगल कटते रहे, बर्फ पिघलती रही तो शायद पचास सालों में दुनिया के कई निचले इलाके डूब जाएंगे। यही हालत रही तो सौ सालों में मालदीव, मॉरीशस सहित भारत के मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे शहर भी पानी में डूबकर विलुप्त हो सकते हैं। इस मामले में सरकारें अपने-अपने स्तर पर प्रयास कर रही हैं, लेकिन अब भी आम आदमी में जागरूकता नहीं आई है। लोग पर्यावरण बचाने में अपनी भूमिका को नहीं पहचानते। वे सोचते हैं- मैं कर ही क्या सकता हूं? पर अगर कोई वास्तव में कुछ करना चाहे तो किसी का मुंह देखने की जरूरत नहीं है।

बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

सांबर का अस्तित्व खतरे में

टुडे नेचर, जम्मू आबादी बढ़ने से मनुष्य के लिए तो संकट पैदा हुआ ही, पशु-पक्षी के अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लगा है। जंगलों में मानव के बढ़ते हस्तक्षेप से वन्य जीवों का स्वच्छंद विचरण करना मुश्किल हो गया है। बार्डर इलाके के नम जंगलों में पाए जाने वाले हिरण प्रजाति के सबसे बड़े जानवर सांबर की भी यही स्थिति है। जंगलों से भटक कर हर वर्ष दो-तीन दर्जन सांबर मैदानी इलाकों में पहुंच कर घायल हो जाते हैं। भागमभाग में कई बार इनको अपनी जान भी गंवानी पड़ती है। करीब दस-बारह साल पहले जम्मू के मैदानी क्षेत्रों में यह जानवर नहीं दिखाई देते थे। हैरत की बात है कि इन जानवरों के सिकुड़ते आश्रय स्थल को सुरक्षित बनाने के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है। खास बात यह है कि जम्मू-कश्मीर में ये सांबर सिर्फ कठुआ से अखनूर तक बार्डर बेल्ट के जंगलों में पाए जाते हैं। सीमा पर 200 किलोमीटर की तारबंदी के बाद इनकी उलझनें और बढ़ गई हैं। एक तरफ सीमा पार के जंगलों में इनका विचरण कम हो गया है, वहीं दूसरी ओर 600 हेक्टेयर में सिकुड़ गए आश्रय क्षेत्र में ग्रामीणों और सुरक्षाबलों की चहलकदमी बढ़ने से ये जानवर अब मैदानी क्षेत्रों की ओर रुख करने लगे हैं। इस वर्ष जनवरी माह से अब तक तीन सांबर मैदानी इलाकों में घायल अवस्था में पकड़े जा चुके हैं। एक सांबर को तो भाग-दौड़ में अपनी जान भी गंवानी पड़ी। आरएसपुरा क्षेत्र के अशोक कुमार का कहना है कि कुछ सालों से मैदानों में सांबरों के दिखने का मामला काफी बढ़ा है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में मांडा के डीयर पार्क में छह सांबर पल रहे हैं और ये सभी नर हैं। इनको सांबर बार्डर क्षेत्र के मैदानी इलाकों से बचा कर यहां लाया गया है और बेहतर वातावरण उपलब्ध करवाया जा रहा है। भूरे रंग का यह सांबर हिरण प्रजाति का सबसे बड़ा जानवर है। इसकी ऊंचाई करीब 160 सेमी और वजन 300 किलोग्राम होता है। फुर्तीले मगर डरपोक स्वभाव के इन जानवरों के टेढ़े-मेढ़े सींग ही इनकी खूबसूरती हैं। विश्व भर में इनकी अच्छी खासी संख्या है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में इनकी संख्या के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। वन्यजीव संरक्षण विभाग के रेंज अधिकारी माजिद का कहना है कि सांबरों की गणना नहीं हुई है। ये दुर्लभ प्रजाति में नहीं आते हैं। वहीं वन्यजीव के विशेषज्ञ ओपी विद्यार्थी का कहना है कि जंगलों में घटती खुराक से ये जानवर प्रभावित हुए हैं।

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