मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010
तो ही बच पाएंगे ग्लोबल वॉर्मिंग से
टुडे नेचर ग्लोबल वॉर्मिंग से दिन- प्रतिदिन हमारे माहौल में बदलवा आ रहा है। दरअसल, वातावरण में खतरनाक स्तर तक ग्रीन हाउस गैसें इकट्ठी होने से हालात इस कदर बदतर हुए हैं। आज पर्यावरणविदों की सबसे बड़ी चिंता यह है कि अगर इसी स्पीड से ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ती रही,तो धरती के वायुमंडल पर उसका कैसा असर पड़ेगा। रिसर्च के अनुसार, अगर टेम्प्रेचर दो डिग्री सेल्सियस तक बढ़ता है, तो इसे तापमान में धीमी बढ़ोतरी माना जाता है, लेकिन अगर तापमान पांच डिग्री सेल्सियस या इससे ज्यादा बढ़ता है, इसके हानिकारक प्रभाव पड़ सकते हैं। तापमान में धीमी बढ़ोतरी से पीने के पानी का संकट पनप सकता है। तटीय प्रदेशों पर इसका उलटा असर पड़ सकता है। पर्वतीय प्रदेशों की जलवायु पर घातक असर हो सकते हैं। इससे वहां के पेड़- पौधे और हरियाली तहस- नहस हो सकती है। वैसे, इस हालात में सुधार लाने के लिए सरकार की ओर से लगातार कोशिशें जारी हैं, लेकिन इसके साथ ही उद्योगों को भी ग्लोबल वॉर्मिंग रोकने की दिशा में ठोस कदम उठाने पड़ेंगे। अगर समय रहते इसे न रोका जाए, तो भविष्य में इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। इसलिए भविष्य में कॉर्परट जगत के लिए योजना बनाते समय कुछ क्षेत्रों पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत होगी। ऊर्जा क्षमता : सीएफएल/ एलईडी लाइटिंग, बिल्डिंग डिजाइन और अप्लाइंस स्टैंडर्ड। लोअर कोस्ट, ग्रेटर यूजबिलिटी : सौर ऊर्जा और वायु जैसे नए संसाधनों के इस्तेमाल को बिजनस प्लान में जगह दी जा सकती है। पावर फॉर्म वेस्ट: बायो केमिकल्स कन्वर्जन, वेस्ट वॉटर यूज, सीवेज यूटिलाइजेशन और रिसाइकलिंग। नए बिजनस मॉडल तैयार करना। अब 2050 तक विश्व में कार्बन की प्रॉडक्टविटी करीब 7500 डॉलर प्रति टन तक बढ़ानी होगी। इस दौरान एनर्जी सेक्टर को भी बदलाव के कई दौर से गुजरना होगा।
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Yah waaqayi chinta ka vishay hai..
जवाब देंहटाएंनिर्धनता और शोषण का वशीभूत भारतीय जान समुदाय इस अवस्था में छ्चोड़ा ही नही गया है की वह ऐसे विश्वा-स्तरीय मुद्दों पर सोच सके. आइए कुच्छ अपना घर भी संभाले -
जवाब देंहटाएंhttp://bhaarat-bhavishya-chintan.blogspot.com
स्वागत है! धरती आैर पर्यावरण की चिंता सबको िमलकर करनी होगी, आपका प्रयास सराहनीय है।
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